No Need to Compliment Yourself

यह आपसे बेहतर कोई नहीं जानता कि आप कितने अच्छे या कितने समर्थ हैं। याद रखिए, किसी के बोलने से आप बुरे या अच्छे नहीं बनते और न ही आपकी योग्यता कम या ज्यादा होती है।


दुनिया में बहुत कम लोग ही ऐसे होते हैं जिन्हें स्वयं पर भरोसा होता है बाकी ज्यादातर लोग खुद से ज्यादा दूसरों के द्वारा अपने लिए दिए गए COMPLIMENT पर भरोसा करते हैं। अगर लोग उनकी तारीफ करते हैं तो वह बहुत पॉजीटिव फील करते हैं और खुद को एक बेहतर इंसान समझने लगते हैं, भले ही वह वास्तविकता में उतना बेहतर न हों। पर उन्हें ऐसा लगता है कि सामने वाला व्यक्ति सही बोल रहा है। अपनी तारीफ सुनकर वह खुद को कभी खुशी समुद्र में और कभी सुकून के सातवें आसमान पर पाते हैं। यह कुछ हद तक सही हो सकता है।

मैं इसके विरूद्ध नहीं हूं कि इंसान को दूसरों की तारीफ नहीं करनी चाहिए। किसी के बारे में अपनी राय व्यक्त करना अच्छी बात है। परंतु मैं ऐसा मानता हूं कि हमें लोगों की राय से प्रभा​वित नहीं होना चाहिए। हमारे बारे में लोगों की राय उनकी अपनी समझ के हिसाब से होती है। दूसरे लोग हमारे बारे में जो राय व्यक्त करते हैं सामान्यत: वह एक पक्षीय होती है। वे लोग जो ​देखते हैं उसके हिसाब से अपनी वै​चारिक क्षमता के अनुरूप अपनी राय, टीका—टिप्पणी हमारे बारे में व्यक्त करने लगते हैं।

लोगों की बात को सुनिए, और उन पर मंथन कीजिए कि उन बातों से आप वास्तविकता में कितना संबंध रखते हैं। आपके बारे में बोली गई बातें वास्तव में किस सीमा तक सही हैं।

हालांकि लोग इस तथ्य को ज्यादा महत्व नहीं देंगे। कारण कि उनका मानना होगा कि यह तो पॉजीटिव बात हैं, तारीफ हैं, इनसे हमें भला क्या नुकसान हो सकता है। जी हां, जनाब! आप सही सोच रहे हैं, इन बातों से आपको कोई नुकसान नहीं होगा, परंतु आपकी अवधारणा ऐसी जरूर बन जाएगी कि आपको अपनी तारीफ, अच्छी तारीफ सुनने की आदत लग जाएगी। उसका परिणाम यह होगा कि आपको हर कार्य के लिए लोगों के मुंह से अपनी तारीफ सुनने की आदत लग जाएगी। अगर आप कोई कार्य सही भी करें और उसके लिए लोगों के COMPLIMENT अगर आपको नहीं मिले, तो आपको यह शंका होगी कि 'कहीं यह गलत तो नहीं है।'

यह तो हुई सामान्य स्थितियों की बात, अगर आप कोई कार्य सही भी करते हैं परंतु किसी कारणवश वह जनता के सामने गलत रूप में पेश किया जाता है तो उस कार्य को लेकर आपके प्रति जनता का जो रवैया होगा वह स्वमेव ही नकारात्मक होगा। और भगवान न करे, कि आपको पॉजीटिव COMPLIMENT की आदत पड़ गई हो, तब तो वह नकारात्मक कमेंट्स आपके जानलेवा भी हो सकते हैं।

आपको न चाहते हुए भी ऐसा लगेगा कि आपने वह काम गलत किया है, आप दूसरों से तो क्या खुद से भी नजर नहीं मिला पाएंगे। इसी के प्रमाण के लिए आप उनकी कहानियों को पढ़ सकते हैं जो मासूम होकर भी, केवल पब्लिक के नकारात्मक कमेंट्स के कारण बेवजह मौत को गले लगा गए।

आप ऐसे मत बनिए कि लोगों के कमेंट्स से या COMPLIMENT से आपके जीवन की दिशा तय हो। आपने कितना संघर्ष किया, कितना सही किया यह कोई नहीं देखता, बस एक चमक या एक काला धब्बा देखकर लोग अपने विचार और तारीफ के तीर चलाकर आपको दिग्भ्रमित करते हैं।

आप सही हैं या गलत, यह आपके स्वयं के विवेक से तय होना चाहिए। अगर आपके कार्य को कोई गलत कहता है तो वह उसका नजरिया हो सकता है लेकिन आपको निराश नहीं होना चाहिए कि उसने मेरे कार्य पर नकारात्मक प्रतिक्रिया दी। अगर आप पर सकारात्मक प्रतिक्रिया आती है तो भी आपको इतना खुश नहीं होना चाहिए कि आपको ऐसी प्रतिक्रियाओं की आदत पड़ जाए।

कोई यह नहीं देखेगा कि आपने वर्ष भर कितनी मेहनत की, बस लोग यह यह देखते हैं कि आप परीक्षा में अव्वल आए या अनुत्तीर्ण हुए। अगर आप बिना पढ़े भी अव्वल आते हैं तो लोग तारीफ के पुल बांध देंगे और रात—दिन पढ़कर भी किसी कारण से असफल होते हैं तो लोग आपको गधा ही कहेंगे। इसलिए लोगों को कहने दीजिए, बस आप अपने आप पर यकीन रखिए क्योंकि आपको, आपके संघर्ष को आपसे बेहतर किसी ने नहीं देखा है। 
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