जैसा हमारा दृष्टिकोण होता है यह दुनिया हमें वैसी ही दिखने लगती है। अब यह हमारा दृष्टिकोण तय करेगा कि दुनिया हमें कैसी दिखेगी ...!
यह दुनिया हमें कैसी दिखेगी यह हमारा दृष्टिकोण तय करता है और हमारा दृष्टिकोण कैसा रहेगा यह हमारी सोच और सूझ—बूझ पर निर्भर करता है। संसार में ऐसा कोई इंसान नहीं होगा जिसके मन में किसी चीज, इंसान या तथ्य को लेकर अपना दृष्टिकोण न हो, कोई अवधारणा न हो।
किसी चीज को लेकर हमारा दृष्टिकोण कितना व्यापक होगा यह हमारी शिक्षा, अनुभव और सूझ—बूझ से ओत—प्रोत होता है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण आप अपने समाज में देख सकते हैं। अगर कोई चोर चमकते वस्त्रों में, गुपचुप तरीके से आसपास दिखता है, तो उसके बारे में सामान्य अवधारणा यही होती है कि वह किसी अमीर घर का, सज्जन व्यक्ति होगा, जो मौन रहना पसंद करता है। बहुत कम इंसान ऐसे होंगे जो उसकी गतिविधियों से उसके बारे में अवधारणा तय करेंगे। भले ही वह इंसान कुछ समय बाद चोरी करके आपके बीच से गुम हो जाए और आपकी अवधारणा बदल जाए, पर तत्समय हम उसके बारे में एक सामान्य अवधारणा यही रखेंगे कि वह एक आम और संभ्रांत नागरिक है। यदि वहां पर गुप्तचर विभाग, या ऐसे किसी क्षेत्र का व्यक्ति होगा तो वह अवश्य ही उसकी गतिविधियों से उसको पहचान लेगा।
आपके समक्ष दो व्यक्ति आते हैं जिसमें एक व्यक्ति बड़े ही तड़क भड़क तरीके से अपनी बात प्रस्तुत करता है और दूसरा व्यक्ति अपनी बात रखने में लड़खड़ाता है, उतने प्रभावी तरीक से अपनी बात के नहीं रख पा रहा है तो यही दृष्टिकोण निकलकर सामने आएगा कि पहला व्यक्ति सही है, दूसरा व्यक्ति गुनाहगार है।
5 प्रतिशत मानव ही ऐसे होंगे जो यह दृष्टिकोण रखते होंगे कि दूसरा मानव सही है क्योंकि वह दुनियादारी से परे है, उसे अपनी बात रखना नहीं आता है इसलिए पहला व्यक्ति उस पर हावी हुआ है, पहला व्यक्ति गुनाहगार है परंतु चटक होने के कारण, अनुभवी होने के कारण उस मासूम इंसान को अपना शिकार बना रहा है।
आज समाज में ऐसे हजारों केस होते हैं जहां पर ऐसे मासूम इंसान को चटक, चालाक लोगों द्वारा शिकार बना लिया जाता है परंतु हम अपना दृष्टिकोण, एक सीमित अवधारणा तक ही रखते हैं और जो सामने आया, बस एक पक्षीय निर्णय लेकर उसके बारे में दृष्टिकोण बना लेते हैं। इसका कारण यह होता है कि हमारे दृष्टिकोण का, हमारे अनुभव का दायरा सीमित होता है। हम ज्यादा सोचना ही नहीं चाहते हैं, बस जो आम अवधारणा होती है उसी को अपना दृष्टिकोण बनाकर दुनिया के तमाम तथ्यों पर एक पक्षीय निर्णय ले लेते हैं।
यह हमारा दृष्टिकोण ही होता है जो हमें मासूम इंसान गुनहगार नजर आता है और चोर एक सभ्य इंसान प्रतीत होता है। कई बार यह दृष्टिकोण सही भी होता है परंतु हमें अगर दुनिया का वास्तविक रूप देखना है, किसी के बारे में सही निर्णय लेना है तो हमें अपने सोच का, अपने दृष्टिकोण का दायरा बढ़ाना होगा। तभी हम किसी चीज के बारे में सही अभिमत दे सकेंगे।
हालांकि आपके अभिमत से, आपके दृष्टिकोण से दुनिया को कोई फर्क नहीं पड़ता परंतु आपका दृष्टिकोण आपकी व्यक्तिगत लाइफ पर बहुत प्रभाव डालता है। आपका बेटा, बेटी, पत्नी या प्रेमिका आपसे कुछ छिपाते हैं तो यह आम धारणा कि 'इनका कोई चक्कर है।' आपके रिश्तों को तार—तार कर सकता है। अगर आप अपने आपको शक की दलदल में जाने से बचाना चाहते हैं, अपने रिश्तों को बचाना चाहते हैं तो आपको अपने दृष्टिकोण को बदलना होगा। तथ्यों को गहराई से समझकर, वास्तविकता से समझकर, पूर्ण मंथन के उपरांत ही अपना दृष्टिकोण तय करना होगा।
किसी चीज को लेकर हमारा दृष्टिकोण कितना व्यापक होगा यह हमारी शिक्षा, अनुभव और सूझ—बूझ से ओत—प्रोत होता है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण आप अपने समाज में देख सकते हैं। अगर कोई चोर चमकते वस्त्रों में, गुपचुप तरीके से आसपास दिखता है, तो उसके बारे में सामान्य अवधारणा यही होती है कि वह किसी अमीर घर का, सज्जन व्यक्ति होगा, जो मौन रहना पसंद करता है। बहुत कम इंसान ऐसे होंगे जो उसकी गतिविधियों से उसके बारे में अवधारणा तय करेंगे। भले ही वह इंसान कुछ समय बाद चोरी करके आपके बीच से गुम हो जाए और आपकी अवधारणा बदल जाए, पर तत्समय हम उसके बारे में एक सामान्य अवधारणा यही रखेंगे कि वह एक आम और संभ्रांत नागरिक है। यदि वहां पर गुप्तचर विभाग, या ऐसे किसी क्षेत्र का व्यक्ति होगा तो वह अवश्य ही उसकी गतिविधियों से उसको पहचान लेगा।
आपके समक्ष दो व्यक्ति आते हैं जिसमें एक व्यक्ति बड़े ही तड़क भड़क तरीके से अपनी बात प्रस्तुत करता है और दूसरा व्यक्ति अपनी बात रखने में लड़खड़ाता है, उतने प्रभावी तरीक से अपनी बात के नहीं रख पा रहा है तो यही दृष्टिकोण निकलकर सामने आएगा कि पहला व्यक्ति सही है, दूसरा व्यक्ति गुनाहगार है।
5 प्रतिशत मानव ही ऐसे होंगे जो यह दृष्टिकोण रखते होंगे कि दूसरा मानव सही है क्योंकि वह दुनियादारी से परे है, उसे अपनी बात रखना नहीं आता है इसलिए पहला व्यक्ति उस पर हावी हुआ है, पहला व्यक्ति गुनाहगार है परंतु चटक होने के कारण, अनुभवी होने के कारण उस मासूम इंसान को अपना शिकार बना रहा है।
आज समाज में ऐसे हजारों केस होते हैं जहां पर ऐसे मासूम इंसान को चटक, चालाक लोगों द्वारा शिकार बना लिया जाता है परंतु हम अपना दृष्टिकोण, एक सीमित अवधारणा तक ही रखते हैं और जो सामने आया, बस एक पक्षीय निर्णय लेकर उसके बारे में दृष्टिकोण बना लेते हैं। इसका कारण यह होता है कि हमारे दृष्टिकोण का, हमारे अनुभव का दायरा सीमित होता है। हम ज्यादा सोचना ही नहीं चाहते हैं, बस जो आम अवधारणा होती है उसी को अपना दृष्टिकोण बनाकर दुनिया के तमाम तथ्यों पर एक पक्षीय निर्णय ले लेते हैं।
यह हमारा दृष्टिकोण ही होता है जो हमें मासूम इंसान गुनहगार नजर आता है और चोर एक सभ्य इंसान प्रतीत होता है। कई बार यह दृष्टिकोण सही भी होता है परंतु हमें अगर दुनिया का वास्तविक रूप देखना है, किसी के बारे में सही निर्णय लेना है तो हमें अपने सोच का, अपने दृष्टिकोण का दायरा बढ़ाना होगा। तभी हम किसी चीज के बारे में सही अभिमत दे सकेंगे।
हालांकि आपके अभिमत से, आपके दृष्टिकोण से दुनिया को कोई फर्क नहीं पड़ता परंतु आपका दृष्टिकोण आपकी व्यक्तिगत लाइफ पर बहुत प्रभाव डालता है। आपका बेटा, बेटी, पत्नी या प्रेमिका आपसे कुछ छिपाते हैं तो यह आम धारणा कि 'इनका कोई चक्कर है।' आपके रिश्तों को तार—तार कर सकता है। अगर आप अपने आपको शक की दलदल में जाने से बचाना चाहते हैं, अपने रिश्तों को बचाना चाहते हैं तो आपको अपने दृष्टिकोण को बदलना होगा। तथ्यों को गहराई से समझकर, वास्तविकता से समझकर, पूर्ण मंथन के उपरांत ही अपना दृष्टिकोण तय करना होगा।
कुल मिलाकर बात यह है कि दुनिया की वास्तविकता को समझने के लिए आपको भेड़चाल से हटकर अपने स्वयं की योग्यता, अनुभव और तथ्यों के अनुरूप अपना दृष्टिकोण तय करना होगा। अगर आप लोगों को चोर समझेंगे तो वह आपको चोर ही लगेंगे और अगर आप उन्हें सज्जन समझेंगे तो वह सज्जन लगेंगे। तो तय कीजिए दुनिया आपको कैसी देखनी है, शंका के साथ या स्पष्ट अभिमत के साथ।
0 Response to "Change Your Point of View"
Post a Comment