आज की दौड़—धूप भरी जिन्दगी में यदा—कदा ही मुस्कुराते, खिलखिलाते चेहरे नजर आते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे जीवन का सुनहरा बसंत कहीं खो सा गया है और हम धीरे—धीरे मशीनी मानव में परिवर्तित हो रहे हैं।
कुदरत ने चेहरा तो सभी को दिया है पर हर किसी चेहरे पर आपको मुस्कुराहट दृष्टिगोचर नहीं होगी। इसका कारण यह भी माना जा सकता है कि लोग मुस्कुराना भूल चुके हैं या किसी आंतरिक पीड़ा ने उनकी मुस्कुराहट का भक्षण कर लिया है। या फिर यह भी हो सकता है कि कुछ लोग शर्मीले हों और मुस्कुराने में झिझक महसूस करते हों। कारण चाहे जो भी हो पर वास्तविकता यही है कि चांद से चेहरे पर मुस्कान की रोशनी कम ही दिखाई पड़ती है।
कुछ लोग इसे समय का फेर भी मानते हैं। कहते हैं कलियुग आ गया है और अब रामराज नहीं रहा, हर ओर पीड़ा के काले मेघ छाए हैं जो मानव समुदाय की किलकारियों को घोर निराशा के दलदल में तब्दील कर रहे हैं। यह मानसिकता कुछ हद तक सत्य मान्य की जा सकती है परंतु शत् प्रतिशत कदापि नहीं।
यह यथार्थ सत्य है कि समय के साथ परिस्थितियां बदल जाती हैं पर यह भी उतना ही सत्य है कि हम अगर अपने सिद्धांत पर अटल रहें तो कुछ नहीं बदलता, चाहे युग बदले या मौसम! आपको शायद यकीन न हो पर एक बार आप अपने परिवेश में नजर घुमाकर कुदरती नजारों का अवलोकन कीजिए। आपको चहुंओर मंद—मंद मुस्काते हुए वृक्ष, नदियां, पौधे और परिन्दे नजर आएंगे। अगर आप अंतर्मन की दृष्टि से देखेंगे तो आपको यह भान होगा कि कुदरत के इन रूपों के लिए कोई युग नहीं बदला। ये पूर्व की भांति ही अपने क्रियाकलापों में मग्न होकर, मदमस्त होकर झूम रहे हैं।
हमने विज्ञान, अध्यात्म और हर क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति की, परंतु हम जीवन के वास्तविक रस का आनन्द नहीं ले सकते हैं। कोई ऐसा सौन्दर्य उत्पाद नहीं जो हमारे जीवन की उमंग को वापिस लाकर हमारे चेहरे पर स्थायी मुस्कुराहट ला दे। हमने बीमारी, आपदा, मौसम और यहां तक कि कृत्रिम संरचना तक का विकास कर लिया है परंतु फिर भी हमारे सुन्दर से मुखड़े पर मुस्कुराहट नहीं है, हमारे हृदय में आत्मसंतोष नहीं है। हम निरंतर विकास के बावजूद आज भयातीत होकर अपने ही देश, राज्य और घर में शोकाकुल मुद्रा में विचरण करते हैं।
अपने मन को खुश करने के लिए हम सिनेमा के दृश्यों का सहारा लेते हैं पर वह भी हमारे हृदय में चिर स्थायी होकर नहीं रह पाते बल्कि हमें क्षणिक हंसी प्रदान कर हमारी अंतर्चेतना से लुप्त हो जाते हैं। हंसी, खुशी या मुस्कुराहट हमारे जीवन से इस कदर लुप्त हो गई है कि स्वयं की फोटो लेने के लिए हमें बड़ी मेहनत करके एक मुस्कुराती मुद्रा का निर्माण करना होता है।
हमने बहुत धन कमा लिया, बहुत विकास कर लिया लेकिन अब जरूरत है मुस्कुराहट कमाने की। यद्यपि यह कोई द्रव्य नहीं जिसे संग्रहीत किया जा सके। यह एक कला है, एक आदत है जो हमें अपने जीवन का हिस्सा बनानी है। जिस उमंग और शिद्दत के साथ हम अपने अन्य व्यावसायिक लक्ष्यों के पीछे भागते रहे, उसी दृढ़ निश्चय के साथ हमें इस आनन्दमयी स्माइल को खोजना है और उसे अपने जीवन के संदूक में स्टोर करना है। अपने चांद से चेहरे पर मुस्कान की रोशनी लाकर इस संसार को एक हंसता हुआ, एक जीवंत मानव समुदाय प्रदान करना है। ताकि कोई फोटोग्राफर फोटो लेते समय यह न कहे कि भाई! 'स्माइल प्लीज' आपकी एक अच्छी फोटो चाहिए।
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